प्रदूषण की मार
प्रदूषण की मार,
सह रहा संसार
रोको इस प्रदूषण को मनुज,
वरना फिर पछताओगे
दूषित होती रही धरा यूं ही
तो कैसे रह पाओगे
वायु प्रदूषण यूं ही होता रहा तो,
शुद्ध पवन की सांस कहां से आएगी
दूषित पवन से बीमार होते जाओगे
वन कटे, उपवन हटे
हरियाली कम होती गई,
गर्मी का स्तर बढ़ा गर,
जलवायु प्रदूषण ,ऊष्मीकरण होगा
मनुज कैसे तुम सह पाओगे
जल प्रदूषण किया तो,
धरती बंजर हो जाएगी
फ़िर क्षुधा मिटाने की खातिर
फल, फूल कहां से लाओगे
ध्वनि प्रदूषण के चलते,
मानसिक शांति नहीं मिल पाएगी,
ऐसा ही रहा तो एक दिन
मानसिक रोगी बन जाओगे
तो जाग हे मनुज,
आने वाली भावी पीढ़ी की ही खातिर
कुछ संयम से कुछ नियंत्रण से
लगा ले लगाम इस प्रदूषण पर
दे दे सौगात नई पीढ़ी को..
*****✍️गीता
अतिसुंदर भाव
धन्यवाद भाई जी 🙏
Nice thought
Thanks for your valuable compliment Pragya.
मानव जीवन के स्वच्छ वायु बहुत जरूरी है। जीवन से जुड़ी बेहतरीन कविता है यह
आपकी इस बहुमूल्य समीक्षा के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी ।प्रेरणा हेतु अभिनन्दन🙏