प्रभु का इंसाफ़
करके भ्रूण-हत्या
दो बेटियों की,
उसने दो बेटे फ़िर पाए
खुश हो कर मस्त घूमता,
कहता सौभाग्य जगाए
बड़े हुए जब बेटे उसके,
दो बहुएं घर में आईं
सास-ससुर की अवहेलना
करने में, कोई कसर ना उठाई
बेटे भी अब मुंह चढ़ाकर,
घर में घूमा करते
क्या हुआ है,सबको अचानक
दोनों पति-पत्नी सोचा करते
हर दिन, क्लेश होता था घर में,
सब मान-सम्मान गंवाया
एक दिन दुखी मन से,
वो बोला प्रभु से..
प्रभु, कहां चूक हुई है मुझसे,
ये कैसा संकट आया
रोता था दिन-रात तड़पता,
पूछा करता प्रभु से
प्रभु, मेरे साथ ये क्या हुआ
मैनें तो अपने जीवन में,
किसी का दिल भी नहीं दुखाया
एक दिन प्रभु सपने में आए,
उसको ये समझाया,
तेरा पाप ही तेरे आगे,
दुर्दिन बन कर आया
जिन दो बेटियों की तुमने
भ्रूण-हत्या करवाई है,
वे ही अब बहुएं बनकर बदला
लेने आई हैं, वे बदला लेने आईं हैं..
*****✍️गीता
वाह, बहुत ही जबरदस्त कविता है, वाह
कविता की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
पीयूष जी 🙏
बहुत खूब।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका अमित जी🙏
बहुत खूब, बहुत शानदार
बहुत सारा धन्यवाद आपका कमला जी 🙏
वाह वाह, बहुत सुंदर पंक्तियां, कवि गीता जी ने इस कविता में सच को उजागर किया है। इतनी प्रभावशाली बात को इस तरह सुमधुर शैली में प्रस्तुत कर देना कवि की विद्वता की निशानी है। पुत्र प्राप्ति की चाह में कन्या भ्रूण हत्या करने वाले यह नहीं समझते हैं कि बेटियां प्रेम की मूर्ति हैं। बहुत सुंदर रचना है।
कविता की इतनी सुंदर और उत्साह वर्धक समीक्षा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी ।कविता के मर्म को समझने के लिए और
आपकी मूल्यवान टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार सर🙏
बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद आपका वसुंधरा जी 🙏
बहुत खूब
बहुत बहुत शुक्रिया भाई जी 🙏