प्रवासी मजदूर
क्या तुम कभी यह भूल पाओगे
क्या फिर कभी वापस आ पाओगे
शायद तुम्हे आना पड़े, मजबूरी में
मजबूरी बहुत कुछ करवाती है
यह ही इन्सान को भटकाती है
कैसे भूलोगे तुम, इस मीलों के सफर को
जब तुम आए पहली बार, मन में लिए तरंगें हजार
जीवन में कुछ पाने की चाह लिए छोड़ा परिवार
अब, फिर वक़्त ने ठोकर मारी
फिर छोड़ना पड़ा बसा बसाया घर बार
हर बार क्या यूँ ही उजड़ते रहोगे
तुम अपने किसके कहलाओगे
तुम्हे वापस ना आना पड़े इस बार
कोई मजबूरी ना आए तुम्हारे पास
कोशिश करना तुम भूल जायो उस पीड़ा को
भूल पाऐ तो दर्द कम होगा
दर्द के निशान रहेंगे बाकी
तुम यहां भी रहना, मेहनत करते रहना
यही तुम्हारा सब कुछ है
कोई माने ना माने जमाना रहेगा सदा कर्जदार तुम्हारा
तु ऐसे ही नहीं शिल्पकार कहलाता।
अतिसुंदर अभिव्यक्ति
शुक्रिया
बेहद संजीदा अभिव्यक्ति
धन्यवाद
काबिले तारीफ कविता
शुक्रिया
👌
शुक्रिया
बहुत खूब, अति सुन्दर कविता
धन्यवाद
मजदूरों की कथा और उनकी व्यथा का सजीव चित्रण।
सुंदर रचना
शुक्रिया जी
अतिसुंदर भाव
धन्यवाद जी
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद जी