प्रियतम
प्रियतम की बस एक झलक पर
हर आशिक जी जाता है
आंखों की मदहोशी में वह
जाने क्या-क्या पी जाता है
अधखिली कली जब गालों पर
ठहर ठहर मंडराती है
मन के अंतर्द्वंद से मिलकर
आंख खुली शर्माती है
प्रिय का चुंबन लेकर भंवरा
मदमस्त हुआ फिर मचल गया
मेघों के संग घूम रहा मन
कभी गिरा कभी संभल गया
तुम बिन क्यों कटती नहीं
जीवन की अब रात प्रिये
क्या सचमुच तुम में जादू है
कर दो पूरी मुराद प्रिये ।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज
उत्कृष्ट श्रृंगार रस की रचना
धन्यवाद
सुन्दर
धन्यवाद
सुंदर प्रस्तुति
धन्यवाद
वाह वाह बहुत खूब
धन्यवाद
Very nice
Thanks
Atisunder