प्रेम भावों को लूटा दूँ
जी जला दूँ गीत गाकर
फूंक डालूँ स्वर जलाकर
भेदभावों को मिटा दूँ,
प्रेम भावों को लुटा दूँ।
आँसुओं को सब सुखा दूँ,
सत्य पर नजरें झुका दूँ,
भावनाओं में न बह कर,
लेखनी अपनी उठा लूँ।
ठेस पाऊँ सौ जगह से,
धर्म पथ की ही वजह से,
पर अडिग चलता रहूँ,
भाव निज लिखता रहूँ।
शांति हो कोलाहलों में
लेखनी हो सांकलों में
हो मुखर कहता रहूँ मैं
बात सच लिखता रहूँ मैं।
वाह पाण्डेय जी, बहुत खूब, अति उत्तम है आपकी रचना। आपकी लेखनी अनमोल है। यूँ ही अपनी लेखन की निर्बाध गति में चलते रहिये। साहित्य सृजन करते रहिए। बहुत गजब लिखते हैं आप। श्रेष्ठ कवि के श्रेष्ठ भाव
वाह बढ़िया व सटीक लेखन, बढ़े चलो। न किसी का भला न किसी का बुरा, दमदार तरीके से अपनी राह चलते रहें, वाह वाह
शांति हो कोलाहलों में
लेखनी हो सांकलों में
हो मुखर कहता रहूँ मैं
बात सच लिखता रहूँ मैं।
__________ एक अच्छे कवि और साहित्यकार की यही पहचान है कि वह हमेशा सत्य बात ही कहे चाहे चाहे उस पर कितनी भी बन्दिशें हों। उच्च स्तरीय भाव लिए हुए बहुत सुंदर शिल्प के साथ एक शानदार कविता का सर्जन हुआ है आपकी लेखनी से, वाह !
“सृजन हुआ है “
वाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
Nice thought