‘‘फितरत’’
हे मानव तेरी फितरत निराली, उलट पुलट सब करता है,
बंद कमरे में वीडियो बनाकर, जगजाहिर क्यों करता है?
शादी पार्टी में खाना खाकर, भरपेट झकास हो जाता है,
बाहर आकर उसी खाने की, कमियां सबको गिनाता है
जिस मां की छाती से दूध खींच, बालपन में तू पीता है
उसी मां को आश्रम में भेजकर, चैन से कैसे तू जीता है
बचपन में तू जिद्द करके अपनी, हर बात मनवाता है
बुढ़े माॅ-बाप की हर इच्छा को, दरकिनार कर जाता है
मां, बहन, बेटी और भाभी की, रक्षा का दम तू भरता है,
ये सब अगर दूसरे की हों तो, नीयत बुरी क्यों करता है?
दवा, दारु, बड़े शौ-रुम में, मुंहमांगा दाम चुकाता है
रिक्षा, सब्जी, ठेलेवालों से भाव-तौल क्यूं करता है
कमियां गिनाकर इलेक्शन में, सबको खूब भड़काता हैं
जीता तो सत्ता में आकर, तू सभी समस्या झुठलाता हैं
पक्ष-विपक्ष के मकड़जाल में, कार्यकर्ताओं को उलझाता हैं
शादी-पार्टी में विरोधियों संग, जमकर जाम उड़ाता हैं
दूर दराज के नामी मंदिरों में, जेवर और धन भिजवाता है
पड़ोस की गरीब बेटी की शादी में, रुपया भी नहीं चढ़ाता है
हे मानव दो-दो चेहरों से क्यूं, बहुरुपिया जीवन जीता है
सीधी सादी-सी जिन्दगी में, सब उलट पुलट क्युं करता है
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Geeta kumari - February 23, 2021, 7:31 pm
मनुष्य की फितरत के बारे में बताती हुई बहुत सुंदर और यथार्थ परक रचना, उत्तम अभिव्यक्ति
Rakesh Saxena - February 23, 2021, 8:03 pm
धन्यवाद 🙏
Anu Singla - February 24, 2021, 7:11 am
बहुरुपिया जीवन जीता है मानव …बिल्कुल सही
सुन्दर रचना
Rakesh Saxena - February 25, 2021, 6:32 am
धन्यवाद् सर 🙏
Satish Pandey - March 1, 2021, 12:55 am
बहत खूब अति उत्तम रचना
Pragya Shukla - March 8, 2021, 1:53 pm
Waah sir