फिर-फिर तुझको तोल रहा हूँ
प्रियतमे तेरे स्वरूप का
कैसे वर्णन करूँ अब मैं,
सब उपमान सुंदरता के
आ गए पूर्व की कविता में।
काले बादल से सुन्दर बाल,
कमल की पंखुड़ियों से गाल,
झील सी आंख, शुक की सी नाक
हाथी सी मदमाती चाल ।
चाँद सा चेहरा, कोयल सी बोली
इन सब में अब तक तू तोली ,
फिर-फिर तुझको तोल रहा हूँ
तुला पुरानी है घटतोली।
अज्ञेय कह गए थे यह सब
उपमान हो गए मैले अब,
तब भी मैं इन उपमानों से
तुझे सजाता हूँ अब तक।
तेरी सुंदरता पर अब तक
मैं खोज न पाया नए शब्द
जिससे निस्तेज रही कविता
कलम रही मेरी निःशब्द।
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vivek singhal - August 6, 2020, 9:10 am
WAAH
Satish Pandey - August 6, 2020, 10:13 am
सादर धन्यवाद विवेक जी
Geeta kumari - August 6, 2020, 9:23 am
वाह, और क्या चाहिए।श्रृंगार रस से सजी सुंदर रचना।
Satish Pandey - August 6, 2020, 10:13 am
सादर धन्यवाद जी
vivek singhal - August 6, 2020, 9:37 am
Sir, aap bhi pratiyogita wali kavita daaliye
Satish Pandey - August 6, 2020, 10:14 am
जी विवेक जी, कोशिश करता हूँ। सादर धन्यवाद
Neha - August 6, 2020, 10:13 am
Osm
Satish Pandey - August 6, 2020, 1:16 pm
सादर धन्यवाद
Vasundra singh - August 6, 2020, 12:48 pm
अज्ञेय की ‘कलगी बाजरे की’ की कविता का सुंदर उद्धरण
Satish Pandey - August 6, 2020, 1:17 pm
जी धन्यवाद
Ritika bansal - August 6, 2020, 2:57 pm
nice
Satish Pandey - August 6, 2020, 4:13 pm
सादर धन्यवाद जी
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - August 6, 2020, 5:53 pm
वाह वाह बहुत सुंदर
Satish Pandey - August 7, 2020, 7:28 pm
सादर धन्यवाद