फिर मधुर सी गुनगुनाहट
कोई यहाँ आया नहीं
गीत भी गाया नहीं
फिर मधुर सी गुनगुनाहट
कान में कैसे बजी।
क्या पवन संदेश लाई
भूतकालिक प्रेम का
या किसी शैतान भँवरे की
है यह मुझ पर ठिठोली।
पर लगा ऐसा कि जिसके
तार थे दिल से जुड़े,
आज उसके शब्द कैसे
कान में आकर पड़े।
बूंद सी थी वह मुहब्बत
खो गई थी जग-उदधि में
वक्त बीता, हम भी संभले
घिस गये थे शूल गम के।
आज फिर से याद करने
को किया मजबूर है,
खो गया बीता हुआ कल
जो गया चिर दूर है।
बहुत सुंदर कल्पना
सादर धन्यवाद
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
सादर आभार
उच्चकोटि की शानदार प्रस्तुति
बहुत बहुत आभार
खूबसूरत रचना
बहुत बहुत धन्यवाद