बचपन जल रहा है
बचपन जल रहा है,
जल उसे बुझा न सकेगा,
जल रहा है बड़ों की इच्छाओं के तले,
उनकी आशाओं के तले,
चाहते हैं पूरे हो सब ख्वाब,
पर कभी पूछते नहीं उनसे,
बांधकर एक सीमित दायरे में,
कैसे बचपन पल रहा है,
जहां टिमटिमाती आंखों में,
खेलकूद के सपने कम,
और जिम्मेदारियों का बोझ,
ज्यादा पड़ रहा है,
बचपन जल रहा है।
कुछ अभिभावक करते हैं ऐसा, लेकिन बच्चों पर अपनी महतत्वाकांक्षाओं का बोझ नहीं डालना चाहिए। उनकी इच्छाओं का सम्मान रखते हुए सही मार्गदर्शन करना चाहिए।……
………. बहुत सुंदर रचना
सुन्दर समीक्षा के लिए हार्दिक धन्यवाद मैम जी
Welcome
अतिसुंदर भाव अतिसुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद सर
कोई किताबों से दब रहा है,
कोई बेसहारों से मर रहा है,
छूट गए आज बचपन उनके,
बचपन से ही जो हॉस्टल में रह रहा है
नौकरी का दबाव मिल रहा है,
बचपन से ही वह सपने जला रहा है,
आपकी बहुत ही अच्छी कविता
बहुत बहुत आभार सर
Dil ko chu liya
धन्यवाद सर
बहुत सुंदर पंक्तियां
Thank you
अनोखा