बचपन जल रहा है

बचपन जल रहा है,
जल उसे बुझा न सकेगा,
जल रहा है बड़ों की इच्छाओं के तले,
उनकी आशाओं के तले,
चाहते हैं पूरे हो सब ख्वाब,
पर कभी पूछते नहीं उनसे,
बांधकर एक सीमित दायरे में,
कैसे बचपन पल रहा है,
जहां टिमटिमाती आंखों में,
खेलकूद के सपने कम,
और जिम्मेदारियों का बोझ,
ज्यादा पड़ रहा है,
बचपन जल रहा है।

Related Articles

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. कुछ अभिभावक करते हैं ऐसा, लेकिन बच्चों पर अपनी महतत्वाकांक्षाओं का बोझ नहीं डालना चाहिए। उनकी इच्छाओं का सम्मान रखते हुए सही मार्गदर्शन करना चाहिए।……
    ………. बहुत सुंदर रचना

  2. कोई किताबों से दब रहा है,
    कोई बेसहारों से मर रहा है,
    छूट गए आज बचपन उनके,
    बचपन से ही जो हॉस्टल में रह रहा है

    नौकरी का दबाव मिल रहा है,
    बचपन से ही वह सपने जला रहा है,

    आपकी बहुत ही अच्छी कविता

New Report

Close