बचपन

बचपन की एक प्यारी छवि, जो आज तुम्हें मैं बतलाता हूं।
मन कल्पना के दर्पण में, उसे देख मैं सुख पाता हूं।
गांव की वह प्यारी गलियां, जिसमें बचपन का नटखटपन है।
खट्टे मीठे ताने बाने है, मित्रों के वह अफसाने हैं।
क्या बचपन है क्या मंजर है, जिसमें हमको ना कोई गम है।
नादानी नटखटपन और पवित्रता ना ईश से कम है।
वह गलियों की दादी नानी, वह अनुशासन की प्रतिछाया, उनसे कौन करे मनमानी।
पर साथ ही प्रेम की मूरत, और वात्सल्य की दानी।
जिनके परप्यारे भी अपने, यह कैसी है छवि न्यारी।
हंसते खेलते खाते पीते कैसे बचपन बीत गया, सब अपने थे नहीं पराए सबसे सबका मीत गया।
आज बैठ जब दूर विदेश में उस छवि को मैं ध्याता हूं,
आंखों में बचपन बस जाता मानो मैं ईश्वर पाता हूं।

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close