बचपन

फूलों ने जब साथ दिया,
मैं भी महकना सीख गया
चिड़ियों ने जब साथ दिया,
मैं भी चहकना सीख गया
चलना गिरना, गिरकर चलना,
लगा रहा यह जख्मो भर
पापा की जब उंगली थामी,
तब मैं भी चलना सीख गया
जीवन के कुछ अनुभव लेने
घर से बाहर निकला था
देख के उनकी मोहक सूरत
दिल से अपने फिसल गया
छोड़ दिया जिसके खातिर,
मैंने अपने जीवन को
वह मुझे छोड़कर बीच डगर में
घर को अपने निकल गया
मैं डूबा था जिसकी आंखों में
ख्वाबों में जिसके खोया था
वह दिल में मेरे बसती थी
जिसकी खातिर मै रोया था
जो कभी नहीं हारा
बिन कोशिश हरदम जीत गया
लाख कोशिश की मगर
वह अपनो से ही हार गया।

जेपी सिंह ‘अबोध’

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

New Report

Close