बड़ी फ़िक्र थी
कविता- बड़ी फ़िक्र थी
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बड़ी फ़िक्र थी उसे मेरी,
सौ बार समझाती थी,
कालेज समय से आया करो,
कमियाँ रोज बताया करती थी|
नाखून बड़े हैं बाल बड़े,
कालर इतना गंदा है,
जगह देख क्यों नहीं बैठते
हाथ तुम्हारा साफ नहीं है|
शर्ट में कैसे धूल लगी,
क्रोध में आकर चिल्लाती थी,
बटन खुली हैं हीरो बनोगे,
खुली बटन बंद करती थी|
खूब खर्च करो पैसा,
खुद की मेहनत के थोड़े ही हैं
मुझसे रोज ही लड़ती थी,
बेपनाह मोहब्बत करती थी|
नाखून मेरा बाल मेरा,
कालर साफ भी होता था,
इसलिए गंदा कहती थी,
छू छू के बातें करती थी|
सबसे लड़ती मेरे लिए ,
मेरी बुराई न सुनती थी,
मै खुश रहूं, हर उपाय करती
कभी कॉपी भी लिख देती थी|
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***✍ऋषि कुमार “प्रभाकर”—-
सुन्दर रचना
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बहुत खूब
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बहुत ही सुन्दर रचना है ऋषि जी बहुत ही भावपूर्ण और बिना किसी त्रुटि के । “खुली बटन बंद करती थी|खूब खर्च करो पैसा,”
बस, “खुली बटन” के स्थान पर “खुले बटन” लिखना था … बाकी सब बढ़िया
Tq
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कुछ सुधार आया है कुछ कमियां रह गई हैं जो सुधर जाएगी..
जल्दी सीख रहे हो आप
रही बात भाव की तो हमेशा की तरह लाजवाब
🙂tq
सुन्दर रचना