बताओ कैसे निभा सकोगे
जो मन में है तुम उसे कहो ना
न बोलो चुपड़ी सी बात ऐसे
दिखावा करके दिलों का नाता
बताओ कैसे निभा सकोगे।
भरा है नफरत का भाव भीतर
अधर हैं बाहर खिले हुए से
ये दो तरह के दबाव लेकर
व्यवहार कैसे निभा सकोगे।
निभा लो चाहे किसी तरह से
मगर न सच्चे कहा सकोगे,
भरी है अंतस में आग अपने
उसे कहाँ तक छिपा सकोगे।
दिखावा करके सखा का फिर तुम
दगा करोगे, बताओ कैसे,
बिठा के दिल में छुरा चला दो
जमीर देगा सलाह कैसे।
सभी को धोखा सभी से नफरत
करोगे जीवन निबाह कैसे।
धोखे और नफ़रत के साथ किसी भी व्यक्ति का भला नहीं हो सकता है
“दिखावा करके सखा का फिर तुम दगा करोगे, बताओ कैसे,
बिठा के दिल में छुरा चला दो जमीर देगा सलाह कैसे।” …आह! ,वाह!,बहुत खूब ,जीवन में धोखा देने वाले लोगों से सावधान करती हुई कवि सतीश जी की बहुत ही उच्च स्तरीय रचना, लाजवाब अभिव्यक्ति और शानदार प्रस्तुति
बहुत खूब