बदनाम हो गये

बदनाम हो गये
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बदनाम हो गये जमाने के नजरों में,
वजूद खो दिया खुद का उसे मनाने में,
इल्जाम लगता है इसे कोई और मिल गई,
क्या पता उसे –
रोते-रोते मेरी जिंदगी खाक हो गई,
वह हस्ती है किसी के हाथों में हाथ रखकर,
हम रो रहे हैं माथे पर हाथ रखकर,
शायद उसे –
आज नहीं तो कल समझ आ जायेगा,
आज जिसके साथ हूं मैं,
वह सिर्फ होटल सिनेमा पार्क तक ले जायेगा,
जो पपीहा बनकर जी रहा
वह मेरी मांग का सिंदूर बन जायेगा,
आये मिलन में कोई बाधा तो,
सागर की लहर या –
तूफान बन कर निकल जायेगा,
लांग जायेगा हिमालय को भी,
छोड़ जायेगा घर की चौखट भी,
कभी नहीं हमें अकेला छोड़ पायेगा,
अब हम क्या करें ,
उसने अपने चंद खुशियों के लिए हमें छोड़ा है,
मेरा काम था
पानी में डूबती बिच्छू को बचाना,
डंके मिले या दर्द मिले,
देख लगाव कोई पागल कह दे,
जब तक दर्द को भी सहकर जिंदा हूं,
तब तक बिच्छू तुझे बचाना है
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**✍ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’—–

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Responses

  1. वाह, ऋषि जी ये तो बहुत ही सुन्दर कविता है,एक दम लाजवाब और स्तरीय लेखन । बहुत अच्छे keep it up👏

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