बदलती जिंदगी
कल तक जिस आँगन में पली और बड़ी हुई
आज उसी के लिए पराया हो गया है
कल तक जिस चीज़ को मन करता उठाया
आज अपने वो हाथों को बाँधे बैठी है
कल तक जो करती थी अतिथि सत्कार वो
अब खुद उसी जगह पर आ बैठी है
कल तक जो सारी बातें साझा करती थी
आज वो कई बातों को छिपाये बैठी है
कल तक तो थी हर जिम्मेदारी से दूर
आज वही जिम्मेदारियों को संभाले खड़ी है
कभी रहती न थी चुपचाप और गुमसुम
आज वही एकांत किसी कोने में खड़ी है
कल तक तो थी सभी बंधनों से मुक्त
आज वो हज़ारों बंधनों से बंधी है।।
सुन्दर रचना
Thanks
धन्यवाद सर जी
nice
Thanks
अति सुन्दर
वाह