बर्फ के फाहे
बर्फ के फ़ाहे गिरे सारी रात,
चिपके रहे टहनियों के साथ
सूर्य-रश्मि का मिलते ही ताप,
मोती बन बूंद-बूंद बिखर गए,
हिम के दूधिया से श्वेत कण
धूप में और भी निखर गए
कांप रहा है ठंड से सारा शहर,
बढ़ता ही जा रहा है ठंड का कहर
हिम की ऐसी हुई बरसात,
बर्फ के फ़ाहे गिरे सारी रात..
_______✍️गीता
“मोती बन बूंद-बूंद बिखर गए,”
वाह, गीता जी आनुप्रसिक छटा बिखेरती हुई बेहद खूबसूरत कविता
बर्फ़ गिरने का मोहक चित्रण
सुन्दर समीक्षा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद दीपा जी
वाह, बर्फ़ बारी पर बहुत सुंदर कविता
Thank you seema
बेहद खूबसूरती से भरी सुंदर भावों तथा शिल्प से सजी कविता
सुन्दर समीक्षा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद प्रज्ञा जी
अतिसुंदर भाव
बहुत बहुत आभार भाई जी 🙏