बहकावों में छले गए..
कुछ दावों में, वादों में, कुछ बहकावों में छले गए,
भोले-भाले कुछ किसान झूठे भावों में चले गए..
खेतों में पगडण्डी की जो राह बनाया करते थे,
आज भटक कर वो खुद ही ऐसे राहों में चले गए..
वो ऐसे छोड़ के आ बैठे अपने खेतों की मिट्टी को,
सागर को छोड़ सफीने भी बंदरगाहों में चले गए..
थककर किसान ने जीवनभर जिस रोटी को था उपजाया,
वो रोटी छोड़के कैसे अब झूठे शाहों में चले गए..
अब तो किसान भी नज़रो में दोतरफा होकर रहते हैं
कितने दुआओं में शामिल थे कितने आहों में चले गए..
भोले-भाले कुछ किसान झूठे भावों में चले गए…
– प्रयाग धर्मानी
मायने :
सफीने – नाव
झूठे शाहों – झूठे बादशाह
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Geeta kumari - February 21, 2021, 10:56 am
किसानों पर लिखी गई बहुत सुंदर रचना
Prayag Dharmani - February 21, 2021, 11:14 am
बहुत शुक्रिया आपका
Satish Pandey - February 22, 2021, 2:47 pm
कुछ दावों में, वादों में, कुछ बहकावों में छले गए,
भोले-भाले कुछ किसान झूठे भावों में चले गए..
——– बहुत ही शानदार व संजीदा रचना। कविता में सच्चाई है, सटीकता है।
Prayag Dharmani - February 22, 2021, 7:13 pm
Bahut Bahut Shukriya Aapka..Kavita ke Marm Tak pahuche aap..🙏🙏
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - February 22, 2021, 7:36 pm
अतिसुंदर
Prayag Dharmani - February 22, 2021, 11:21 pm
धन्यवाद सर