बहना की पाती
प्रिय भैया
लिवा ले जाओ न आकर
तुम्हारी याद आती है
यहाँ खुश हूं बहुत लेकिन
मुझे खुशियां रुलाती है
जबसे आई हूं रोती हु कमरा बंद कर करके
कोई आता है तो होंठो में सिसकी सिल जाती है
पूरा दिन झोंक देती हूं चूल्हे की आग में लेकिन
क्या करूँ अम्मा मेरे सपने में आती है
याद नही आता यहाँ कब किस्से रूठी थी
मेरी चूड़ियां मनाती है पायल समझाती है
कन्यादान हो आई यहाँ अपने बनाने को
तेरी तस्वीर ही भैया मुझे अपना बताती है
यहाँ सब अच्छे है लेकिन कोई बात है ऐसी
अपना होने में और बनने में अंतर जताती है
अम्मा ने कहा था आते समय भैया को भेजूंगी
क्या बिगाड़ा था उनका हाय मुझको भुलाती है
चाहिये कुछ नही मुझको मैं जल्दी लौट जाऊंगी
एक बार लिवाने आओ न मुझे यादे बहुत रुलाती है
तुम्हारी अपनी बहन
प्रवीन शर्मा
मौलिक स्वरचित रचना
‘बहना की पाती’ शीर्षक के माध्यम से आपने बहुत सुंदर भावों को प्रस्तुत किया है। भाषा सहज व सरल है। वाह
बहुत आभार
अतिसुंदर भाव
🙏🙏
सुंदर तस्वीर खिंचा है आपने।
धन्यवाद
बहन भाई के प्रेम को प्रदर्शित करती हुई बहुत सुन्दर रचना
🙏आभार
रचना पढ़ कर कृतार्थ करने के लिए
भाई बहन पर सुंदर कविता
धन्यवाद कवियत्री जी