बाद में आयेगी गर्मी
आजकल सो पा रहा है
वह जरा फुटपाथ पर,
ठंड कम लगने लगी
ठिठुरन हुई कम आजकल।
बीते दिन जाड़ों में रोया
रात भर सिकुड़ा सा सोया
बच गया बस जैसे-तैसे
सोच मन में खूब रोया।
धीरे-धीरे ऋतु बदल कर
माह सम मौसम का आया
उग रहे मधुमास में
चैन उसने भी है पाया।
बस यही हैं चैन के दिन
बाद में आयेगी गर्मी,
सोचकर कैसे कटेगी
सोच ने मन है डराया।
Very nice poem
बहुत खूब
निर्धन व्यक्ति के फुटपाथ पर सोने की दयनीय दशा का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करती हुई कवि सतीश जी की बहुत सुंदर रचना
आजकल सो पा रहा है
वह जरा फुटपाथ पर,
ठंड कम लगने लगी
ठिठुरन हुई कम आजकल।
बीते दिन जाड़ों में रोया
रात भर सिकुड़ा सा सोया..
गरीब की व्यथा को व्यक्त करती हुई रचना..
गरीब व्यक्ति को किसी भी मौसम में चैन नही मिल पाता
कभी ठण्ड तो कभी गर्मी सताती है
यथार्थपरक रचना