बिखर रही है लाल अरुणिमा
छवि तेरी मन भाये
सुबह सब ओर मनोहर कोमल सी,
बिखर रही है लाल अरुणिमा
मिहिका बिखरी मुक्ता सी।
जागूँ देखूँ स्वच्छ सुबह को
त्याग अवस्था सुप्ता सी।
तेरी मन भाये सुबह
सब मनोहर कोमल सी।
छवि तेरी मन भाये सुबह।
चहक रहे हैं खगवृन्द धुन में
महक रहे हैं पुष्प आँगन में
बिखर रही हैं भानु की किरणें
साफ, मनोहर, कोमल सी।
छवि तेरी मन भाये
मनोहर कोमल सी।
नोट – प्राकृतिक सौंदर्य पर लिखने का एक प्रयास।
कमाल लेखनी, वाह
बहुत सुन्दर रचना
वाह, बहुत बढ़िया
चहक रहे हैं खगवृन्द धुन में
महक रहे हैं पुष्प आँगन में
बिखर रही हैं भानु की किरणें
साफ, मनोहर, कोमल सी।
छवि तेरी मन भाये
_________ प्रातः काल की बेला के प्राकृतिक सौंदर्य का बहुत ही खूबसूरती से वर्णन करती हुई कवि सतीश जी की बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर शिल्प बहुत सुंदर भाव और लाजवाब अभिव्यक्ति प्रस्तुत करती हुई है एक शानदार रचना
बिखर रही है लाल अरुणिमा
मिहिका बिखरी मुक्ता सी।
जागूँ देखूँ स्वच्छ सुबह को
त्याग अवस्था सुप्ता सी।
Awesome poetry bro
अतिसुंदर भाव
छवि तेरी मन भाये
सुबह सब ओर मनोहर कोमल सी,
बिखर रही है लाल अरुणिमा
मिहिका बिखरी मुक्ता सी।
जागूँ देखूँ स्वच्छ सुबह को
त्याग अवस्था सुप्ता सी।
अति उत्तम लेखन