बेजान हुआ यह जीवन

बेरंग हुआ उसका जीवन, रूप बदलकर स्याह हुआ ।
लाल रंग से टुटा नाता, दूर सोलहो श्रृंगार हुआ ।।
बिछोह हुआ उस प्रीतम से जिससे उसका ब्याह हुआ ।
जिसने पहनाया था चूङा जिससे शुरू परिवार हुआ ।।
कालचक्र का तान्डव,सिन्दूर,आलता बेजान हुआ ।
बीच भंवर में नाता टूटा, सारा जीवन बेजार हुआ ।।
गभी बारात ले धुमधाम से,सजी थी महफ़िल शाम की।
शहनाई की धुन बजी थी, बनी थी मैं जब आपकी ।।
कभी हल्दी सजी थी जिन हाथों में, उनके नाम की।
आज उन्हीं के नाम से नाता बाकी सब बेकाम की।।
हाथों में खनकी थी उनसे ही हरे काँच का कंगन।
पलकों पे सजा, भाया था जो उनको सूर्ख अंजन ।।
साथ ले गये हाथों की रौनक, कहाँ रहा वो खनखन।
तुम जो गये, निर्जन-सा, बेकाम हुआ मेरा तनमन ।।
कभी सधवा थी कहलाती, शुभ कर्म में थी सहभागी ।
तीज-त्यौहार में सज, तेरे लिए, तेरे संग थी सहगामी ।।
आज तुम्हारा साथ जो छूटा, सब व्रत से नाता टूटा ।
कैसे यह भाग्य रूठा, बनी अभागिन,अछूत कुल्टा ।।
किस्मत में ये वदा था या ईश्वर ही मुझसे खफा था।
देखते-ही-देखते, उजङी बगिया जो अभी खिला था ।।
मौला की नियत में खोट होगी, ये कहाँ किसे पता था।
धूमिल धरा पे चुपचाप पङा, इसे कहाँ कोई गिला था।।
तुम तो चले गये ही, मुझे किस के सहारे छोङा ।
अर्धांगनी तुम्हारी, जन्मों जन्म के, कसम को तोङा ।।
कैसे गुज़र करूँगी, किस तरह नन्हीं को रखूगी ।
“पा पा” की तोतली बोली, सुन कैसे क्या कहूँगी।।
तुम तो चले गये ही, मुझे किस के सहारे छोङा ।
अर्धांगनी तुम्हारी, जन्मों जन्म के, कसम को तोङा ।।
कैसे गुज़र करूँगी, किस तरह नन्हीं को रखूगी ।
“पा पा” की तोतली बोली, सुन कैसे क्या कहूँगी।।
हे भाग्य विधाता, बता इस पीङा में, क्या भला है ।
जब मर्जी बिना तेरी एक पत्ता भी ,ना कहीं हिला है ।।
हर जर्रे-जर्रे पर हक, बस तेरा ही नाम वदा है ।
बता दे, तेरे दर पर, क्यूँ नहीं मुझे भी आसरा मिला है ।।

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Responses

  1. “हे भाग्य विधाता, बता इस पीङा में, क्या भला है ।
    जब मर्जी बिना तेरी एक पत्ता भी ,ना कहीं हिला है ।।
    हर जर्रे-जर्रे पर हक, बस तेरा ही नाम वदा है ।
    बता दे, तेरे दर पर, क्यूँ नहीं मुझे भी आसरा मिला है ।।”
    बहुत ही मार्मिक पंक्तियां
    अतिसुंदर रचना

  2. इस कविता से यह स्पष्टतः परिलक्षित हो रहा है कि कवि जीवन के प्रति गहरी दृष्टि रखती हैं। यह कविता मार्मिक होने के साथ-साथ गंभीर और चिंतन-प्रशस्त करने वाली है। यह कविता जीवनानुगत अनुभव से उपजी है जो कि पाठक तक सहजता से संप्रेषणीय है।

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