बेटियां संभालती है
सपनों में आ जाओ
फिर मुझे याद दिलाओ
मेरा वो स्वार्थी मन
तेरा वो भोला बचपन
अनजान मेरी हर शैतानी
कितनी थी तुझे परेशानी
तेरा बर्दाश्त करते रहना
हैरानी में आज भी डालती है
वो खजूर के पेड़ ऊंचे
पत्थर का सर पे गिरना
मेरे डर के कारण
तेरा दर्द सह चुप रहना
याद मुझे है अब भी
रो रो तेरा सो जाना
फिर भी तेरे दर्द को भुला
अपना बचाव करते जाना
छोटी होकर भी बेटियां
बड़े को सदा संभालती है
स्वयं कष्ट का अन्देखा कर
देश समाज को संभालती है
बहुत खूब
Good 👌✍✍
बेटियों पर बहुत ही सुन्दर रचना
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
बचपन के दिनों में पहुँच गए हम