बेटी का घर।
तुम बांध लो अपना सामान,
कुछ भूल ना जाना,
यह सुनते ही,
बेटी का दिल बोला!
यह घर भी,
अपना-सा नहीं लगता।
चार दिन बीत जाने के बाद,
दोहराए जाते हैं यही सवाल!
कि कब आएंगे मेहमान!
कब जाने की तैयारी है!
कुछ पल और रुक जाऊं,
ऐसा दिल चाहता है।
पर ना जाने,
सबके दिल में क्या होता है।
इन रिश्तो में उलझ कर,
समझ नहीं पाती हूं मैं,
कि कौन-सा घर मेरा अपना है।
बहुत खूब
धन्यवाद सर
Nice!!!♡
Thank you
बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत बहुत आभार
Nice
धन्यवाद
बहुत ही उम्दा
बहुत बहुत आभार
बहोत सुंदर लिखा है 👌👌👌
Thank you