बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
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नन्ही -नन्ही कोमल कोपल,
जीवन जीने के मांगे पल ।
पर हाय! दुष्ट मनोविकारी मन,
समझे कुलदीप हीउत्तम।
निर्दयी दानव.. वह नर पिशाच,
जो लील गया उस जीवन को।
पर हाय! कलेजा कांपा ना ,
अपने ही हाथों बलि देकर!!
जो समझे ना वरदान उसे,
अरे हाय!अभागा बेचारा।
अपने ही हाथों फोड़ा हो,
जिसने नसीब का पिटारा ।
ओ बदनसीब! तू क्या जाने,
जिस सितारे को यूं तोड़ दिया,।
आकाश में उसे दमकना था ,
जिसे रात अंधेरेे तोड़ दिया ।
अपनी किस्मत की बलि देकर,
वह नादा इंसा हंसता है ।
दुनिया के कोने कोने में बज रहा उन्हीं का डंका है।
हर तरफ रोशनी फैली है ,
फिर भी आंखों से अंधा है।
अरे खोल कान, सुन ,
देख जरा बेटियों का ही तो डंका है ।

निमिषा सिंघल

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