बेटी से ही तो दुनियां

बचपन से संवेदनशील
बच्चों में होशियार
सब करते हुए भी
लक्ष्य पर रहता ध्यान
हरदम ही समझदार
फिर भी क्यूं शिकार

शायद घर में ही रहकर
सबकी सेवा ही कर-कर
खुद को समझती कमजोर
मन से होती रहती बीमार
समझती खुद को लाचार
शायद इसलिए वो शिकार

अथक जिसकी सेवाये
निकम्में उसे सताये
कैसी विडम्बना है
करनेवाला ही बड़ा है
रक्षा में उसकी आयें
उसे मिलकर समझायें

तूं ही तो आदि शक्ति
तूं न किसी से कमजोर
बेटी से ही तो दुनियां
न कोई तुझमें कमियां
समूह में चलना सीख
सामूहिक ही कर विरोध

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