बेटी
गांव गांव में मारी जाती, बेटी मां की कोख की,
बेटी मां की कोख की, बेटी मां की कोख की।।
जूही बेटी, चंपा बेटी, चन्द्रमा तक पहुंच गई,
मत मारो बेटी को, जो गोल्ड मेडलिस्ट हो गई,
बेटी ममता, बेटी सीता, देवी है वो प्यार की।
बेटी बिन घर सूना सूना, प्यारी है संसार की,
गांव गांव में मारी जाती, बेटी मां की कोख की।।
देवी लक्ष्मी, मां भगवती, बहन कस्तूरबा गांधी थी,
धूप छांव सी लगती बेटी, दुश्मन तूने जानी थी।
कल्पना चावला, मदरटेरेसा इंदिरागांधी भी नारी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो, झांसी वाली रानी थी,
गांव गांव में मारी जाती, बेटी मां की कोख की।।
पछतावे क्यूं काकी कमली, किया धरा सब तेरा से,
बेटा कुंवारा रह गया तेरा, करमों का ही फोड़ा है।
गांव शहर, नर नारी सुनलो, बेटा बेटी एक समान,
मत मारो तुम बेटी को, बेटी तो है फूल बागान।।
(मेरे द्वारा लिखित नाटक “भ्रूण हत्या” का गीत)
राकेश सक्सेना
बेटियों पर आधारित बहुत सुंदर एवम् सटीक प्रस्तुति
धन्यवाद् 🙏
कन्या भ्रूण हत्या पर प्रहार करती कवि की बहुत सुंदर रचना गया यह। इस तरह की कविता मानव मन को झकझोर कर रख देती है। जिससे उसकी आंखें खुलती हैं और वह गलत करने से पहले कुछ तो जरूर सोचता है। बहुत सुंदर कविता
True
Sahi kaha