बेर लग पाये नहीं
कोपलें फूटी अनेकों
पेड़ बन पाये नहीं,
झाड़ियां उग आई मन में
बेर लग पाये नहीं ।
स्वाद था मीठा सभी में
जीभ में परतें जमीं थी
इसलिए मीठी नजर
महसूस कर पाये नहीं।
इस तरह हम खुद ही खुद में
स्वाद ले पाये नहीं,
उलझनों में घिरते- घिरते
पेड़ बन पाए नहीं।
लगातार अपडेट रहने के लिए सावन से फ़ेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम, पिन्टरेस्ट पर जुड़े|
यदि आपको सावन पर किसी भी प्रकार की समस्या आती है तो हमें हमारे फ़ेसबुक पेज पर सूचित करें|
Kamal Pandey - August 23, 2020, 10:32 am
लाजवाब
Satish Pandey - August 23, 2020, 1:59 pm
बहुत बहुत धन्यवाद
Geeta kumari - August 23, 2020, 10:34 am
बहुत सुंदर
Satish Pandey - August 23, 2020, 2:00 pm
अतिसुन्दर टिप्पणी हेतु सादर अभिवादन, सादर धन्यवाद
Prayag Dharmani - August 23, 2020, 10:50 am
अलग खयाल के साथ सुंदर रचना
Satish Pandey - August 23, 2020, 2:01 pm
बहुत सारा धन्यवाद जी
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - August 23, 2020, 11:43 am
Sunder
Satish Pandey - August 23, 2020, 2:01 pm
सादर अभिवादन और धन्यवाद शास्त्री जी
मोहन सिंह मानुष - August 23, 2020, 2:28 pm
लक्षणा शक्ति का सुन्दर प्रयोग , बेहतरीन
Satish Pandey - August 23, 2020, 6:31 pm
सुन्दर समीक्षा हेतु सादर धन्यवाद सर जी
प्रतिमा चौधरी - September 6, 2020, 5:33 pm
बहुत खूब