बेवफा से वफ़ा
दिल ले के वो नादान, दग़ाबाज़ी करते चले गए।
रेत में हम उनके लिए, महल बनाते चले गए।।
हमें क्या पता था, खूबसूरत समंदर की बेवफ़ाई।
हम तो समंदर की सुरत पे, एतवार करते चले गए।।
जो होना था सो तो हो गया, क्या करे “अमित ” ।
ए आँखें भी बिन सावन के ही, बरसते चले गए।।
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Pt, vinay shastri 'vinaychand' - October 17, 2020, 5:46 pm
अतिसुंदर
Praduman Amit - October 17, 2020, 6:48 pm
Thanks Pabdit Jee
Pragya Shukla - October 17, 2020, 7:05 pm
Beautiful poem
Praduman Amit - October 19, 2020, 6:54 pm
Thank u so much
Satish Pandey - October 17, 2020, 7:12 pm
उम्दा पंक्तियाँ
Praduman Amit - October 19, 2020, 6:54 pm
शुक्रिया मेहरबान।
Anu Singla - October 17, 2020, 9:51 pm
सुन्दर
Praduman Amit - October 19, 2020, 6:55 pm
धन्यबाद।
Suman Kumari - October 17, 2020, 10:45 pm
सुन्दर रचना
Praduman Amit - October 19, 2020, 6:57 pm
शुक्रिया सुमन जी।