“भाग्य और प्रीत”
भाग्य कहाँ ले जाता है
और कहाँ मैं जाती हूँ !
प्रीत के बदले प्रीत लुटाती
प्रीत नहीं मैं पाती हूँ..
जीत सके जो मेरा मन
किसी में ऐसी बात कहाँ !
तुझे छोंड़ मैं किसी और को
प्रेम कहाँ कर पाती हूँ..
राह चलूं तब मेरी पायल
छमछमछमछम बजती है,
तेरे मिलन को श्याम ! राधिका
देखो निस दिन सजती है..
हृदय कहाँ ले जाता है
और कहाँ मैं जाती हूँ !
प्रीत के बदले प्रीत लुटाती
प्रीत नहीं मैं पाती हूँ….
“तेरे मिलन को श्याम ! राधिका देखो निस दिन सजती है..”किसी के प्रेम में सराबोर बहुत सुंदर पंक्तियां
सुन्दर शिल्प और सुंदर लय के साथ बहुत सुंदर कविता है, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के साथ, काबिले तारीफ़ रचना
ऐसी ही समीक्षा की उम्मीद थी मुझे
थैंक्स दी
स्वागतम्
अतिसुंदर