भारत रत्न तथा नोबेल

कविता- भारत रत्न तथा नोबेल
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मेरे बाद ख्वाब
सजाएगा कौन,
बुझते हुए दिए को
जलाएगा कौन,
सपना था ,
भारत रत्न नोबेल का,
अब इसे जीतकर लाएगा कौन,
अगर मेरा जीवन अधूरा रहा,
मेरे कुल वंश से पूरा करेगा कौन,
कोई तो होगा-
सपने को साकार बनाएं
संघर्षों से राह बनाएं
आज नहीं तो कल
जीत कर इनाम लाएं
मिट्टी में जो बोया है
रात दिन जो खोया है
सपने लेकर सोता हूं,
सुबह उठा खुद को
खाली पाता हूं,
मायूस कभी हुआ नहीं,
साहस से सपना देखा,
सपने की खातिर आलस्य कभी भी किया नहीं,
होगा कोई कुनबे में ही,
जो मेरा इतिहास पढ़ेगा,
मेरे कुनबे से ही
मेरे सपनों को पंख भी देगा,
साहित्य लिखूं साहित्य पढूं
पढ़ लिख कर यह काम करेगा कौन,
मैं जवानी में बीमार हूं,
लगता है आखिरी शाम है,
यह छोटा सा काम करेगा कौन,
मेरे कुल वंश से नोबेल लाएगा कौन,
अभी ख्वाब की शुरुआत थी
कर्म संग ज्जबात थे,
हौसले कभी टूटे नहीं,
सपने में इतने अधिकार थे,
ईश्वर से वरदान मांगता हूं,
अपने कुल वंश में यह काम मांगता हूं,
यह छोटा सा संघर्ष करेगा कौन,
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कवि ऋषि कुमार प्रभाकर

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Responses

  1. मेरे बाद ख्वाब
    सजाएगा कौन,
    बुझते हुए दिए को
    जलाएगा कौन,
    सपना था ,
    भारत रत्न नोबेल का,
    अब इसे जीतकर लाएगा कौन,

    अत्यंत सुंदर लेखनी है आपकी

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