भोजपुरी चइता गीत- हरी हरी बलिया

भोजपुरी चईता – हरी हरी बलिया |
हरी हरी डलिया मे भरी भरी फलिया ये रामा ,
खेतवा मे डोले ले गेंहुया के बलिया ये रामा
खेतवा मे |
चढले चइत के जबसे मस्त महीनवा ये रामा ,
बहकेला गोरिया के मातल मनवा ये रामा ,
खेतवा मे |
सरसो पियरा गइली मटर गदरइली ये रामा ,
महुआ मे मदन रस अमवा मोजरईले ये रामा ,
खेतवा मे |
कुहुके कोइलरिया बहे पूर्वी बयरिया ये रामा ,
उड़े गोरी के चुनरिया पिया डहके गुजरिया ये रामा ,
खेतवा मे |
फुलवा फुलाई भवरा लोभाई,सजनी सजना रिझावे ये रामा ,
गोरी लेवे अंगड़ाई चइत पिया पिरितिया बढ़ावे ये रामा ,
खेतवा मे |
हरी हरी डलिया मे भरी भरी फलिया ये रामा ,
खेतवा मे डोले ले गेंहुया के बलिया ये रामा
खेतवा मे |

श्याम कुँवर भारती (राजभर)
कवि /लेखक / गीतकार /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब -995550986

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Responses

  1. हरी हरी डलिया मे भरी भरी फलिया ये रामा ,
    खेतवा मे डोले ले गेंहुया के बलिया ये रामा
    ___________ खेतों की हरियाली के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कवि श्याम कुमार भारती जी की अति सुंदर भोजपुरी रचना

  2. सरसो पियरा गइली मटर गदरइली ये रामा ,
    महुआ मे मदन रस अमवा मोजरईले ये रामा ,
    खेतवा मे |
    ——- कवि भारती जी यथार्थ के कवि हैं। इनकी कविता में प्रकृति से गहरा सरोकार है। इनकी शैली शोर मचाने वाली न होकर बहुत ही सरस्, गंभीर और सौंदर्य प्रशस्त है। कवि की कवित्व शक्ति प्रकृति के सौंदर्य से जुड़ी हुई है। लोक भाषा का प्रयोग कर कविता के काव्यत्व और लयत्व में निखार लाया गया है। कवि की संवेदना आम पाठक की संवेदना से तारतम्य बैठाने में सक्षम है।

    1. पाण्डेय जी हार्दिक आभार आपका मगर मेरी रचना से बेहतर आपकी समीक्षा है पुनः आभार आपका

  3. भोजपुरी चईता – हरी हरी बलिया |
    हरी हरी डलिया मे भरी भरी फलिया ये रामा ,
    खेतवा मे डोले ले गेंहुया के बलिया ये रामा
    खेतवा मे |
    चढले चइत के जबसे मस्त महीनवा ये रामा ,

    वाह श्याम कुंवर भारती जी की बहुत ही सुंदर रचना
    जियमें समाहार शक्ति का समन्वय है एवं लयबद्धता के साथ कविता संगीतमय हो जाती है…
    शब्दों का चुनाव बेहतरीन है
    प्रकृति का सुंदर वर्णन किया गया है
    गांव की स्मृति कराती है आपकी कविता

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