मंजुषा से नैतिकता की शिक्षा
मंजुषा से नैतिकता की शिक्षा
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सिर्फ जननी-जनक कहलाने के नहीं अधिकारी हम
विवेकशील, कर्तव्यपरायण कहाते मनुजधारी हम
है मनुज पशु नहीं, क्यूँ दिखाये अब लाचारी हम
बच्चों को नैतिकता सिखाने की ले जिम्मेदारी हम।।
बेघर आवारा कुत्तों की तरह ताकते फिरते इधर-उधर
हैवानियत की निशानी छोङ आते किसी की देह पर
कभी आखों से बेधते, छेङते आते-जाते छेककर
हर सीमा को लाघते, बहसीपन दिखाते आवरू बेधकर।।
अफसोस जताकर निकल जाने की बेर अब है नहीं
बच्चों की हरकतों पर रखते है पैनी नजरें क्यूँ नहीं
मंजुषा से ही मिले नैतिकता, जीवन मूल्यों की शिक्षा किसी के भी घर की अस्मत की नहीं तो खैर होगी नहीं।
हर घर में खुशियों की नितदिन दीवाली मनती रहे
बेखौफ़ बेटियां भी, हर डगर चलती-फिरती रहें
ना डर हो मन में ना खौफ का किसी पे साया रहे
खुशी से चहकती, उसपे आत्मविश्वास की छाया रहे ।।
ना डर हो मन में ना खौफ का किसी पे साया रहे
वाह वाह, बहुत ही शानदार पंक्तियाँ।
यथार्थ को उजागर करती हुई आपकी पंक्तियाँ।
बहुत ही सुंदर
Well said
Thankyou
Good
thank
सुंदर विकल्प।
बहुत बहुत धन्यवाद अमितजी।
पुनः आभार ज्ञापित करती हूँ सहमति देने के लिए
बहुत सुंदर रचना है सुमन जी। यदि माता – पिता नैतिकता का पाठ बेटों को भी पढ़ाएं तो इस समस्या का समाधान हो सकता है।
बहुत बहुत धन्यवाद गीता जी ।अगर सभी सहमत हो तो फिर एक नये माहौल का सृजन हो।
बिल्कुल , सुमन जी👍
बहुत ही सुंदर रचना
बिल्कुल सही अभिव्यक्ति है
सादर धन्यवाद मानुषजी।