मगर कब तक!

ღღ_कर तो लूँ मैं इन्तजार, मगर कब तक;
लौट आएगा बार-बार, मगर कब तक!
.
उसे चाहने वालों की, कमी नहीं है दुनिया में;
याद आएगा मेरा प्यार, मगर कब तक!
.
प्यार वो जिस्म से करता है, रूह से नहीं;
बिछड़कर रहेगा बे-क़रार, मगर कब तक!
.
दर्द अहसास ही तो है, मर भी सकता है;
बहेंगे आँखों से आबशार, मगर कब तक!
.
कहीं फिर से मोहब्बत, कर ना बैठे ‘अक्स’;
दिल पे रखता हूँ इख्तियार, मगर कब तक!!…..#अक्स
.
Beshumaar pyar kiya hamne har lamha unhe
Nafrat se Gujarat hoga, magar kab tak
lajwab manohar ji…..shukriya 🙂
bahut sundar ji 🙂
thank uuu Niranjan ji……
nice
shukriya Virendra ji….
बहुत खूब
shukriya Panna sahab…….
nice
thank uuu Sridhar ji…….
behatreen ghazal sir
shukriya Neelam ji….._/\_
Good
वाह बहुत सुंदर