मन उड़ान तेरी
मन उड़ान तेरी
पंखों बिना चलती रही,
उस तरफ फिर इस तरफ
सब तरफ बहती रही।
चैन आया हो कहीं
ऐसा नहीं संभव हुआ,
एक स्थल पर न टिक पाया
फिरा विस्मित हुआ।
आज मीठा रास आया
और कल भाया नहीं
फिर नमक की चाह आई
तृप्त हो पाया नहीं।
जिन्दगी भर दौड़ चलती ही रही
उलझाव की,
जिंदगी का कब समय बीता
समझ पाया नहीं।
Very nice poem
Thank you
अति सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद
उम्दा लेखन व लयात्मकता
बहुत बहुत आभार
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत धन्यवाद
अतिसुंदर भाव
सादर आभार