Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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मयखाने में साक़ी जैसी दीपक में बाती जैसी नयनो में फैले काजल सी बगिया में अमराई जैसी बरगद की शीतल छाया-सी बसन्त शोभित सुरभी जैसी…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
मेरे जैसी मैं
मैं कहाँ मेरे जैसी रह गयी हूँ वख्त ने बदल दिया बहुत कुछ मैं कोमलांगना से काठ जैसी हो गई हूँ मैं कहाँ मेरे जैसी…
लघुकथा
( लघुकथा ) एक गरीब महिला अपने परिवार के साथ एक टुटी झोपड़ी में रहती थी उसके परिवार में एक बेटी और एक बेटा था…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
बहुत खूब सर
मंज़िल की ओर कदम बढ़ाने की चाहत दर्शाती हुई कवि सतीश जी की बहुत सुन्दर कविता है. सुन्दर भवाभिव्यक्ति और अति सुन्दर प्रस्तुति..
बहुत ही लाजवाब कविता, वाह
Nice line
वाह जी बहुत खूब