“माँ का दिल”
माँ ने कहा:- सुनते हो जी
आज ही के दिन हुआ था जन्म हमारे बेटे का
पिता ने बोला हाँ, याद है
माँ बोली अब फोन करके
कर देती हूँ विश
माँ ने बेटे को फोन मिलाया
बेटा माँ पर चिल्लाया
इतनी रात गये माँ ने तुमने मुझको क्यों फोन मिलाया ?
सुबह करूंगा बात नींद तुमने कर दी है खराब
फिर पिता ने बेटे को फोन मिलाया
बोला यह तो पागल है
तेरे जन्म से हर रात मुझे यह जगाती है
इसी समय जन्मा था लल्ला मुझको रोज बताती है
आज तुम्हें तुम्हारे जन्मदिवस पर देने को बधाई
माँ है ना इस कारण खुद को रोंक ना पाई
तू सो जा मैं समझा लूंगा
बेटा सुनकर दंग हो गया
खुद पर ही शर्मिंदा हो गया
घर आया और हाथ जोड़कर
माँ के पैरों में गिर गया
बोला माँ मैं शर्मिंदा हूँ
अपनी गलती की निंदा करता हूँ
माँ बोली तू लाल है मेरा
मैं तुझसे नाराज कहाँ हूँ!!
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Geeta kumari - December 23, 2020, 7:07 pm
माँ के निश्छल प्रेम की कहानी को कविता रूप में बहुत ही सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है कवि प्रज्ञा जी ने । पुत्र ने भी नादानी में की गई गलती को माँ के निश्छल प्रेम के आगे मान लिया है । बहुत सुंदर
Pragya Shukla - December 24, 2020, 2:48 pm
बहुत बहुत आभार इतनी सुंदर रचना हेतु
Praduman Amit - December 23, 2020, 7:11 pm
माँ ममता की सागर है यदि संतान लाखो दु:ख दे दे माँ को फिर भी माँ अपने संतान की गलती को कभी भी अपने औलाद के सामने दु:ख व्यक्त नहीं करती। यही आज के संतान क्यों नहीं समझ रहा है। यही अफसोस आज भी उन बेटों का है जो बेटा अपनी माँ के प्रति आज भी सजग है।
Pragya Shukla - December 24, 2020, 2:49 pm
बिल्कुल सही और सटीक समीक्षा की है आपने सर बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Sandeep Kala - December 23, 2020, 10:01 pm
माँ के वात्सल्य का सुन्दर चित्रण
Pragya Shukla - December 24, 2020, 2:49 pm
धन्यवाद
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - December 24, 2020, 2:59 pm
अतिसुंदर अभिव्यक्ति