“माँ”
“माँ”
कितनी बार धुप मे खुन को जलाई तुने “माँ” मेरी लिए चंद रोटियाँ लाने मे।
कितनी बार तुने खुशी बेच ली “माँ” तुने मुझे सुलाने मे।।
कितनी बार दुसरे से लड़ गई
” माँ ” मुझे बस के सीट पर बैठाने मे,
कितनी बार अपनी सोना– चाँदी बेची “माँ” मुझे रोजगार दिलाने मे।
कभी खुशी कभी आँसु बेची माँ मुझे घर से बाहर भेजने मे।
तब पर भी ये मतलबी दुनिया तुझे क्यो छोड़ देते है, “माँ “बुढ़े हालतो मे।।
तब पर बद्दुआ नही शब्जी बेच कर देती माँ ।।
माँ तेरे हाथो कि कमाल अब भी याद है जिस दिन आपका हाथ सिर पर जाता कब्बडी मे दुसरे को पटक कर आती मै।।
माँ जैसा दुनिया मे कोई दर नही।।
ज्योति
मो न०9123155481
Waah
nice
बहुत खूब
Badhiya
Good
वाह
अतिसुन्दर लिखा है आपने
बहुत सुंदर पंक्तियां