माँ

माँ न होती,
तो यह श्रष्टि न होती

पृथ्वी है माँ,
प्राण है माँ

उचित अनुचित की ,
द्रष्टि है माँ

-विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर)-

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पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) स्पेशल ——————————– इन दो हाथों के बीच में पृथ्वी निश्चित ही मुसकाती है पर यथार्थ में वसुंधरा यह सिसक-सिसक रह जाती…

पृथ्वी

सबका भार सहती है,पृथ्वी फिर भी कुछ न कहती है पृथ्वी नित सारी श्रष्टि को, निस्वार्थ सब देती है पृथ्वी -विनीता श्रीवास्तव(नीरजा नीर)-

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