माँ
माँ!!
इतना बूढ़ी होने के बाद भी
तुम इतनी परवाह करती हो मेरी,
खाया या नहीं,
रात को ठंड हो रही है
कम्बल ओढ़ लेना अच्छी तरह।
पहुंचते ही फोन कर देना,
अच्छे से जाना,
लंच कर लेना,
जुकाम सा लग रहा है तुम्हें
काढ़ा बना देती हूँ।
चाय का मन है तो
चाय बना देती हूं,
सिर में हाथ लगाऊं तो
पूछती हो, सिर दर्द तो नहीं है
पेट में हाथ लगाया तो
फिर प्रश्न
यह सब कहती रहती हो,
माँ!!
इतनी बूढ़ी होने पर भी
इतनी परवाह करती हो।
माँ की ममता को, आपने अच्छा चित्रण किया है।
ऐसी ही होती है माँ
मां की ममता का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है कवि सतीश जी ने अपनी इस रचना में । मां ऐसी ही होती हैं
अतिसुंदर