माँ

अपनी माँ को छोड़ कर,
वृद्धाश्रम के द्वार पर।
जैसे ही वो बेटा अपनी कार में आया,
माँ के कपड़ों का थैला,
उसने वहीं पर पाया।
कुछ सोचकर थैला उठाकर,
वृद्धाश्रम के द्वार पर आया।
बूढ़ा दरबान देख कर बोला,
अब क्या लेने आए हो
वह बोला बस यह माँ का,
थैला देने आया हूं।
दरबान ने फ़िर जो कहा उसे,
सुन कर वह सह नहीं पाया,
धरा निकली थी पैर तले से
खड़ा भी रह नहीं पाया।
वह रोता जाता था,
भीतर बढ़ता जाता था
मां सब मेरी ही गलती है,
मन ही मन दोहराता था।
दरबान ने उसे जो बताया,
सुन कर उसका अस्तित्व हिला..
चालीस वर्ष पूर्व बेटा तू
मैडम को यहीं मिला।
6-7 माह का एक बच्चा,
सड़क किनारे रोता था।
उनसे नहीं कोई तुम्हारा नाता है,
वो जन्म देने वाली नहीं,
बस पालने वाली माता है।
जिसको यहां से उठाकर ले गई,
वह छोड़ उसे फ़िर यहीं जाता है।
तू ही जाने यह कैसा तेरा खेल विधाता है।
वो करती हैं काम यहां,
उनके जीवन में आराम कहां।
जिसको दिया सहारा कभी,
पढ़ा-लिखा कर बड़ा किया।
वह आज सारे नाते तोड़कर,
उसे बेसहारा छोड़ गया।
फ़िर उस बेटे को अफसोस हुआ,
आंखों से अश्रु-धार न थमती थी,
जिसने मेरी उंगली थामी,
मैं उसका हाथ छोड़ चला था,
आह! मैं क्या करने चला था।
वापिस जाकर माँ को लाया,
माँ ने उसको गले लगाया।
माँग कर माफी अपने कृत्य की,
तब जाकर उसने चैन पाया।।
____✍️गीता

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Responses

  1. बहुत सुंदर रचना। माँ की ममता और पुत्र द्वारा ठुकराए जाने की सच्चाई का मार्मिक वर्णन किया गया है। बहुत लाजवाब कविता

    1. प्रेरणा देती हुई इस सुन्दर समीक्षा हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी

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