माखन
कविता- माखन
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नटखट लाला नयनो के तारा, छोड़ दे तू सब काम निराला|
मैं सह लूंगी बात तुम्हारी,
आए शिकायत रोज तुम्हारी|
सुन सुन के मै हार गयी हू,
गगरी फोरा सब की सारी,
घर का ही तो माखन चुराए,
बाल सखा संग माखन खाए|
खा ले बेटा दुख नहीं मुझको,
दुख तो मुझको माखन गिराए|
डांट में तेरे प्यार छिपा है,
माखन से मीठा हाथ तेरा है|
कानों को तूने जब-जब पकड़ा,
माना हमने प्यार मिला है|
देख जरा तू अपना साथी,
छोड़ तुझे वे भाग चले हैं|
कर ले मिताई मुझसे बेटा,
दूध दही सब तेरे लिए है|
बिगड़ गया है इनके संग|
छोड़ दे बेटा इन सब का संग|
जो करना है तो घर में कर ले,
मत कर बेटा सब के संग|
सब कोई तुझको न जान सकेंगे,
ना बेटा तुझको पहचान सकेंगे|
समझ ले बेटा मेरी ममता की कीमत,
कोई तुझको डांटे हम सह न सकेंगे|
प्रेम रतन धन अनमोल खजाना,
आजा मेरे मदन गोपाला|
जब जब आउ इस दुनिया में,
हो मेरा बेटा तू नटखट लाला|नटखट लाला………
कवि -ऋषि कुमार “प्रभाकर ”
पता- ग्राम खजुरी खुर्द ,थाना-तह.कोरांव
जिला- प्रयागराज, उ. प्र.
पिन कोड 212360
बहुत खूब, वाह
🙏tq