माता-पिता अकेले
माता-पिता अकेले
छोड़े हैं गांव में,
कोई नहीं सहारा
रोते हैं गांव में।
तकलीफ और दुःख में
पानी भी पूछने को,
कोई नहीं है संगी
जीवन है डूबने को।
ताकत नहीं रही अब
हाथों में पांव में
मुश्किल हैं काटने पल
जईफी की नाव में।
संतान दूर उनसे
शहरों में जा बसी है,
आशा समस्त बूढ़ी
रोते हुए बुझी है।
वे सोचते हैं हम भी
पौत्रों के साथ खेलें
खेलें नहीं तो थोड़ा
देखें उन्हें निहारें।
लेकिन नसीब को यह
मंजूर ही नहीं है,
होते हुए सभी कुछ
अपने में कुछ नहीं है।
अत्यंत सुन्दर कविता लिखी है आपने
बहुत बहुत धन्यवाद
अतिसुंदर भाव
सादर धन्यवाद
बहुत खूब
धन्यवाद
Awesome poem
Thank you
Nice poem
Thanks