माता-पिता को भूलकर

माता-पिता को भूलकर तू
चैन में खुद को समझ मत
आज तेरा वक्त है फिर
वक्त बदलेगा समझ ले ।
आज तू अपने में खुश है
दूर बैठा है शहर में
अपने बच्चे और पत्नी
बस रमा है खुद ही खुद में।
आस में बैठी हैं घर में
उन बुजुर्गों की निगाहें
टकटकी पथ पर लगाये
इंतजारी में हैं आहें।
पाल-पोषित कर तुझे
लायक बनाया था जिन्होंने
आज तूने वे भुलाये,
शर्म कर ले वो अभागे।
फर्ज अपना भूल कर तू
मौज में कब तक रहेगा,
यह समय जाता रहेगा
तू जवां कब तक रहेगा।
आंख अपनी खोल प्यारे
याद कर बचपन के दिन
किस तरह से प्यार करते थे
तुझे माँ-बाप तब
तूने यौवन के नशे में
सब भुलाई नेह-ममता
माँ-बाप की हालत से तेरा
क्यों नहीं हृदय पिघलता।
—— डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय

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Responses

  1. सर आपने बहुत ही अच्छा लिखा है, वास्तव में जो माता-पिता को भूल जाता है वो जिन्दा होकर भी मुर्दे के समान होता है

  2. बिलकुल सही कहा आपने ।
    माता पिता की बात भी चुभने लगती है
    जवा होते ही, इनकी हर बात बुरी लगती है
    गैरो की बात वो असर कहाँ रखती है
    पर निज खून की छोटी सी फटकार भी चुभती है ह

  3. माता-पिता की उपेक्षा करने वालों को आपने सही आईना दिखाया है। बहुत ही अच्छी कविता

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