मातृभाषा
विविधता में एकता के सूत्र को सहजता से पिङोती जो
संस्कृत की बेटी, विविध भाषाओं की सहचरी है वो।
माँ सी ममता जिसके हर वर्ण में समाहित है
फिरन्गी भी जिसे सीखने को ललायित हैं ।
जो भारती के माथे पे बिन्दी बन सुशोभित है
जन- जन की भाषा देवनागरी लिपि से विभूषित है ।
रस, अलंकार, जैसे आभूषण हैं जिसके,
विभिन्न रूपों में दिखते अंदाज जिसके ।
जिसकी पहली शिक्षा माँ के आँचल से मिलती
लोङियो में जिसकी अभिव्यक्ति, गोद में होती
प्रेम, वात्सल्य, ममत्व, आत्मीयता की परिभाषा है
कोई और नहीं, हर जन की प्रिय अपनी हिन्दी भाषा है
बहुत सुन्दर रचना
सादर आभार
वेलकम सुमन जी 🙏🙏🙏
हमारी हिंदी के लिए, बहुत सुंदर पंक्तियां
बहुत बहुत धन्यवाद
Sunder
बहुत बहुत धन्यवाद शास्त्री जी ।
बहुत खूब
प्रेम, वात्सल्य, ममत्व, आत्मीयता की परिभाषा है
कोई और नहीं, हर जन की प्रिय अपनी हिन्दी भाषा है
सुन्दर कविता, बेहतरीन पंक्तियाँ
Very good