मात-पिता की सेवा
भेजकर आश्रम में माता-पिता को,
वह बहू-बेटा बहुत खुश हो रहे थे।
चुपचाप चल दिए वे बुजुर्ग दंपत्ति,
घर को छोड़ते वक्त बहुत रो रहे थे।
सोच कर मुसीबत गई घर से,
वो बहू-बेटा राहत महसूस कर रहे थे।
बारह बरस का पुत्र उनका,
चुपचाप सब देख और समझ रहा था।
बोला, माँ मैं शादी नहीं करूंगा,
क्यों मेरे लाल ऐसा क्यों बोलता है
शादी करेंगे तेरी, बहू आएगी घर में,
देखना कितनी रौनक लाएगी घर में।
कोई लाभ नहीं है माँ ,
जब तुम दादा-दादी बन जाओगे
फिर तुमको भी आश्रम जाना होगा,
कैसे सब कुछ सह पाओगे ।
तब ऑंख खुली उसके मात-पिता की,
शर्मिंदगी से गर्दन झुक गई
उनके अंतर के पाट खुले,
मन के सारे मैल धुले
जो बोओगे वही काटना है।
बोले, बस अब और नहीं,
अब मात-पिता को घर लाना है।
मात-पिता की सेवा करके,
बस अब पुण्य कमाना है॥
____✍गीता
माता – पिता के लिए अति सुन्दर भाव
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत बहुत धन्यवाद जी 🙏
जो बोओगे वही काटना है।
बोले, बस अब और नहीं,
अब मात-पिता को घर लाना है।
मात-पिता की सेवा करके,
बस अब पुण्य कमाना है॥
— कवि गीता जी, आपने बहुत सुंदर संदेश दिया है। कविता की पहली आवश्यकता है कि वह समाज को सही दिशा दे सके, जब दिशा दी जायेगी तो उसका कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य पड़ेगा। सामाजिक जीवन से मिली को पंक्तिबद्ध कर समाज को प्रेरित करने में आपने पूरी सफलता पाई है।
कविता की इतनी सुन्दर और उत्साह वर्धक समीक्षा के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद सतीश जी, अभिवादन
बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद रोहित जी
प्यार जिन से मिला उन्ही पेड़ों को कैसे सताते हैं
क्या सिखाते हैं और क्या संतान सीख जाते हैं
सुन्दर समीक्षा के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद राजीव जी🙏
बहुत ही सुंदर संदेशप्रद कृति दीदी जी 🙏
बहुत बहुत धन्यवाद अमिता