Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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योग दिवश पर विशेष
योग के अलौकिक गुणों के माध्यम से कोरोना को दें मात रोगी के शरीर को योग के माध्यम से धीरे धीरे रोग मुक्त कर दें…
मनुज अब सुमिरन करता है
श्रीराम हरो पीड़ा मनुज अब सुमिरन करता है। जहां तहाँ फैली महामारी, दुखी हुई प्रजा यह सारी, दूर करो रजनी अंधियारी, सुमिरन करता है, मनुज…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
वाणी
मानव का गहना है वाणी, वाणी का भोगी है प्राणी । मधुर वचन है मीठी खीर, कटु वचन है चुभता तीर । सद वचन है…
भक्त प्रहलाद
एक असुर के घर पर जनमा हरि का भक्त महान, उसने मां के गर्भ में ही ले लिया भक्ति का ज्ञान। आयु में छोटा था,नाम…
“कर्मशील बन रोजगार करो।
दीनन हित परोपकार करो।।
मानव जनम न बेकार करो।
‘विनयचंद’ भव पार करो।।”
कवि शास्त्री जी की बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ और उम्दा कविता है यह, यह कविता प्रेरणात्मक काव्य-बोध का निरंतर विस्तार करने में सक्षम है।
“अमृत बेला है अतिपावन। उठो रे तू छोड़ विभावन।।
हरि का सुमिरन कर लो रे।सैर करो तू सुबह -सबेरे।।”
कहते हैं कि सुबह सुबह प्रभु अमृत वर्षा करते हैं,तो उस बेला में यदि सुबह की सैर की जाए और प्रभु भजन किया जाए तो यह सेहत के लिए वरदान समान है। इसी कथन को समझाती हुई कवि विनय चंद जी की बहुत सुंदर कविता
शुक्रिया बहिन
विछावन होना था टंकन त्रुटि सुधार पाठक के ही हाथ में है