मासूम बचपन
बारिश में भीगते-भागते
खिलखिलाते वो दो बच्चे
ना सिर पर छतरी,
ना तन पर कोई रेनकोट
तेज़ हुई बारिश तो,
बैठ गए लेकर एक दीवार की ओट
चेहरे पर हंसी की फुलझड़ी
बालों से टपक रही थी
मोतियों की लड़ी
भीग कर भी खिलखिला रहे
दिख रहा ना कहीं कोई ग़म,
देख-देख मैं सोच रही थी
यही तो है मासूम बचपन
_____✍️गीता
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Piyush Joshi - January 4, 2021, 3:04 pm
बहुत ही यथार्थ समाया है आपकी इस रचना में।
Geeta kumari - January 4, 2021, 3:54 pm
समीक्षा हेतु आभार पीयूष जी
Devi Kamla - January 4, 2021, 3:13 pm
बहुत सुन्दर रचना
Geeta kumari - January 4, 2021, 3:54 pm
बहुत-बहुत आभार कमला जी
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - January 4, 2021, 3:51 pm
बहुत खूब
Geeta kumari - January 4, 2021, 3:55 pm
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी🙏
MS Lohaghat - January 4, 2021, 3:53 pm
बहुत सुंदर और लाजवाब रचना है।
Geeta kumari - January 4, 2021, 3:56 pm
बहुत-बहुत आभार सर
Chandra Pandey - January 4, 2021, 10:38 pm
सच को उजागर करती कविता
Geeta kumari - January 5, 2021, 8:32 am
बहुत-बहुत धन्यवाद चंद्रा जी
Satish Pandey - January 5, 2021, 9:23 am
इस कविता में कवि गीता जी के द्वारा मासूम बचपन के सच को बेबाकी से प्रस्तुत किया गया है। यह कविता दर्शाती है कि जीवन, समाज और आसपास घट रहे के प्रति कवि का गहरा सरोकार है। कवि की शैली चिंतन-प्रशस्त है। परेशानी में भी खुश रहने की आकांक्षा है। कवि की वेदनामय दृष्टि को सहजता से महसूस किया जा सकता है। आम जीवन से उपजी इस कविता की भाषा आम जीवन की भाषा है। बहुत खूब।
Geeta kumari - January 5, 2021, 10:12 am
कविता की इतनी सुन्दर समीक्षा की है सर आपने , कि मेरे हृदय के भावों को ही व्यक्त कर दिया भावों को इतनी अच्छी तरह से समझने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी बहुत-बहुत आभार