मासूम से सवाल
इस छोटी सी उम्र में,
देखते हो ना मुझे,
कभी ढाबों या चाय के ठेले पर,
कभी किसी गैराज में,
कभी लाल बत्ती पर ,
अखबार का बेचना,
ठेले का धकेलना,
कभी सोचा है तुमने,
क्यों अक्सर मैं दिख जाता हूं!
पन्नियों को बटोरता,
बहुत होती है मजबूरियां,
पिता का साथ न होना,
और घर को संभालना,
इस छोटी सी उम्र में,
खुद का पिता बनना।
मुझे अच्छा नहीं लगता,
वो छोटू-छोटू कहलवाना!
हां, मुझे अच्छा नहीं लगता,
किसी से खुद को कम आंकना।
कभी पूछो मुझसे!
क्या अच्छा लगता है मुझको?
हां! अच्छा लगता है!
स्कूल जाना।
रंग-बिरंगी किताबों पर,
जिल्द का चढ़ाना।
पर; कौन सुनता है!
कौन समझता है!
मेरे हालात को,
मुस्कुराकर टाल देते हैं,
मेरे मासूम से जबाव को!
क्या बात है!❤
Thanks
अतिसुंदर भाव
धन्यवाद सर
हौसला बढ़ाने के लिए
बाल श्रम एक जुर्म है , मगर सरकारों का उनको अनदेखा करना ये भी तो जुर्म है।
बाल मजदूरों के मन के भाव का बिल्कुल सजीव चित्रण किया है आपने
उसकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम
बहुत ही उम्दा लेखनी
इतनी सुंदर समीक्षा के लिए हार्दिक धन्यवाद
Nice..!!
धन्यवाद जी
सुन्दर
धन्यवाद
Awesome
Thank you
मजबूरियां मनुष्य को समय से पहले बड़ा कर देती हैं।
बहुत बहुत धन्यवाद
Bahut umda lekhni