मा समान नहीं जग में कोई ।।

मा समान नहीं जग में कोई ।।
मा समान नहीं जग में कोई, पिता सम नहीं कोई महान ।
भाई जैसा न कोई साथी है, बहन जैसा न किसी का प्यार ।
आध अंग की स्वामिनी होती पत्नी व पुत्र होते पिता के शान ।
यहीं है आदर्श परिवार की शान, यहीं है इनका जीता-जागता संसार ।।1।।

सत्य माता पिता ग्यान है, धर्म भाई बहन दया है ।
शान्ति पत्नी पुत्र क्षमा है व साधु है मेहमान स्वरूप ।
इनके न होते कोई नर मित्र और नाही शत्रु ।
ये हैं सत्पुरूषों की पहचान,यहीं है इनका साँचा परिवार ।।2।।

सत्पुरूषों के राह पे जो नर चले वह नर है जग में महान ।
ऐसे ही नर देते जगत में दिव्य-ग्यान ।
इनके दिव्य-ग्यान से विभूषित है सारा-संसार
और कल्याण पाते है जगत-जहां ।।3।।
भौतिक व्यक्ति के पदचिह्नों पे चलना है बेकरा ।
और यदि इनमें भी कोई अच्छाई दिखें तो ग्रहण करना है हमें स्वीकार । ।
हर नर में नारायण बसते । अतः हम करते है सन्त-असन्त को प्रणाम ।
क्योंकि इसी में है हम सबका कल्याण ।।4।।
कवि विकास कुमार

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Responses

    1. शुक्रिया अपनी गलती इंसान को खूद नहीं सुझती आपने हमारी कमिया खोजी । आपको शत-शत नमन ।। सुधार की प्रक्रिया जारी रहेगी, जय राम जी की ।।

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