मिट्टी में मिल जाना है

स्वारथ की खातिर दूजे का
दिल नहीं दुखाना है,
आज नहीं तो कल सबने
मिट्टी में ही मिल जाना है।
धुँवा धुँवा होकर उड़ना है,
बचा हुआ जल में बहना है,
शेष नहीं रहना है कुछ भी
यादों को ही रह जाना है।
यादें भी कुछ वर्षों तक
रहती हैं फिर मिट जाती हैं,
वेदों का कहना है,
संगी बन कर्मों को जाना है,
आज नहीं तो कल सबने
मिट्टी में ही मिल जाना है।
दूजे उन्नति होने पर
चिंता में क्यों जलना है,
चार दिवस जीवन है
चिर निद्रा में सो जाना है।
कर्म नहीं छोड़ना है,
सच्ची राहों पर चलना है,
अपना करना कर देना
बिंदास भाव से जीना है।
ज्यादा तू तू मैं मैं करके
हासिल ज़ीरो हो जाना है
आज नहीं तो कल सबने
मिट्टी में ही मिल जाना है।
—– डॉ0 सतीश पाण्डेय,
——– चम्पावत, उत्तराखंड

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  1. कवि सतीश जी की इस बेहतरीन रचना में दार्शनिक भाव है , सत्कर्म करने की भावना है । बेहतर शिल्प को साथ लिए अद्भुत लेखन, सुंदर लय बद्ध शैली और शानदार प्रस्तुति । लेखनी को प्रणाम है सर, सैल्यूट

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